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मन जग में लगा तो बंधन, जगन्नाथ में लगा तो जन्नत है : अनिरुद्धाचार्य जी महाराज

आरती के साथ कथा का शुभारंभ करते अनिरुद्धाचार्य

श्रीमद भागवत कथा के श्रवण को उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
– सरायरंजन के उदयपुर गांव में हो रहा श्रीमद भागवत कथा का आयोजन
– कथा के माध्यम से हिंदुत्व का अलख जगा रहे अनिरुद्धाचार्य जी महाराज

पंडाल में कथा श्रवण करती महिलाओं की भीड़

मिथिला पब्लिक न्यूज, कमलेश झा ।

सरायरंजन के उदयपुर में श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन सोमवार को देश के प्रसिद्ध कथावाचक डॉ अनुरुद्धाचार्य जी महाराज ने व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक गुण एवं संस्कार पर विस्तृत रूप से चर्चा की।
उन्होंने ने कहा कि मन को हमेशा वश में रखना चाहिए।
मन जग में लगा तो सांसारिक बंधन है वहीं जगन्नाथ में लगा तो जन्नत है। इसलिए मन को ईश्वर में लगाना चाहिए। महाराज ने गुण एवं संस्कार पर चर्चा करते हुए कहा कि नारी सम्मान सर्वोपरि है। उन्होंने महिलाओं का सम्मान करने को कहा।

हिंदुत्व का अलख जगा रहे महराज :


उन्होंने कथा के माध्यम से हिंदुत्व का अलख भी जगाया।
उन्होंने कहा अनिरुद्धाचार्य आया है जगाने, जाग जाओ नहीं तो आपने आप में लड़कर मर जाओगे। उन्होंने लोगों से जातिवाद से बाहर निकल कर संगठित होने की अपील की, ताकि हिंदुत्व को बचाया जा सके। उन्होंने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए सबको एक जुट होने और धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सनातन धर्म को मजबूत करने का आह्वान किया। महाराज ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र को एक माता का संतान बताया। उन्होंने सभी से संगठित होने का आह्वान किया। ताकि फुट डालकर कभी कोई दोबारा गुलाम नहीं बना सके।

हर बेटे को अमन के जैसा बनना चाहिए :


सोमवार को कथा श्रवण के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा था। कथा के दौरान महाराज के गाये भजन
‘श्याम तेरे भरोसे मेरा परिवार है, तू ही मेरी नाव का मांझी तू ही पतवार है एवं बनवारी तेरी यारी दीवाना बना दिया’ के भजन पर पूरा पंडाल झूम उठा था। आयोजक मुकुंद झा एवं उनके पूरे परिवार के साथ कथा पंडाल में मौजूद एक लाख से अधिक श्रद्धालू अपने स्थान पर खड़े होकर नाचने लगे थे। अनिरुद्धाचार्य जी ने आयोजक मुकुंद झा के सुपुत्र अमन जी की मंच से सराहना करते हुए कहा कि हर बेटे को अमन के जैसा बनना चाहिए, जो आज अपने माँ बाप और समाज को भागवत कथा सुना रहा है।

कलयुग के चार स्थान हैं :

उन्होंने भागवत कथा के मूल को राजा परीक्षित की कथा से समझाया। उन्होंने बताया कि जहां भगवान का नाम लिया जाता है, जहां भक्ति होती है वहां कलयुग का प्रभाव नहीं होता। उन्होंने कहा कलयुग के चार स्थान हैं रहने के लिए। पहला जहां जुआ खेला जाता है, दूसरा जहां शराब का सेवन होता है, तीसरा जहां पराई स्त्री को गलत नजरों से देखा जाता है और चौथा जहां मांस का सेवन होता है। उन्होंने बिहार के नौजवानों से शराब नहीं पीने की अपील की। साथ ही नौकरी के पीछे भागने के बजाय व्यवसाय शुरू करने को कहा।

शारीरिक नहीं दिमागी मेहनत करो :

उन्होंने नवयुवकों से कहा मेहनत करो लेकिन शारिरिक नहीं दिमागी रूप से मेहनत करो। आजकल लोग गलत जगह दिमाग लगाते हैं। उन्होंने चाणक्य और रावण का अलग अलग उदाहरण देकर इसे समझाया। उन्होंने ब्रह्मचर्य को समझाया कहा कि शरीर का केंद्रबिंदु नाभी होता उससे नीचे जो एनर्जी चली जाय वह वासना हो जाता है और जो एनर्जी नाभी से ऊपर चला जाय तो वो उपासना बन जाती है। उन्होंने लोगों से ब्रह्मचर्य का पालन करने को कहा।

महाराज ने माता सती के कहानी को भी सुनाया। कैसे और किस कारण से वो जलकर भस्म हो गई थी। इसके साथ ही उन्होंने माता के सभी नौ रूपों का विस्तृत रूप से वर्णन किया। आरती के साथ तीसरे दिन की कथा की समाप्ति हुई। कथा श्रवण के लिए समाजसेवी रंजीत निर्गुणी, जाने माने गजल गायक धिरजकांत के साथ साथ काफी संख्या में दूर दूर से कई जिलों से श्रद्धालु व भक्तगण पहुंचे हैं। कथा के उपरांत प्रश्नोत्तरी का भी आयोजन किया गया।

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