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घुट घुट कर जी रहा समस्तीपुर, रेड जोन में जिला, एक्यूआई लेबल 350 के पार

मिथिला पब्लिक न्यूज़, डेस्क ।

* समाहरणालय से शुरू सदर अस्पताल में खत्म, क्या सिर्फ ऐसी रैलियों से पॉल्यूशन होगा कम ?

* सिर्फ कागजी खानापूरी करने में जुटा जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग
* प्रदूषण का एक्यूआई लेबल 350 से ऊपर, रेड जोन में समस्तीपुर जिला
* जिले में पॉल्यूशन को काबू में करने का नहीं है कोई समुचित उपाय


समस्तीपुर की गिनती देश के गिने चुने सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में हो रही है. जिला रेड जोन में आ गया है. यहां प्रदूषण का एक्यूआई लेबल 350 से ऊपर चल रहा है. इसके बावजूद जिले में पॉल्यूशन को काबू करने का कोई समुचित उपाय नहीं दिख रहा है. ऐसे में सिर्फ एक दिन जागरूकता रैली निकाल देने से काम नहीं चलेगा. जो समाहरणालय से शुरू होकर सदर अस्पताल में खत्म हो जाता है. अब आप ही बताइये साहब! क्या सिर्फ ऐसी रैलियों से एवं एक दो दिन अनुमंडल कार्यालय से लेकर बारह पत्थर मोड़ तक करीब 5 सौ मीटर में सड़क पर पानी का छिड़काव करा देने से पॉल्यूशन कम होगा ?

आपका विभाग है कि सिर्फ कागजी खानापूरी करने में जुटा है. वैसे आम लोगों की भांति सोचें तो इस पॉल्यूशन के पीछे सबसे बड़ा हाथ तो आप का ही है साहब. आपकी अनदेखी के कारण ही पॉल्यूशन का लेबल भाग रहा है. जिस वजह से जिले की बड़ी आबादी सांस की तकलीफ, एलर्जी, गले में कफ, अस्थमा, सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस, क्रॉनिक खांसी एवं सुनने की क्षीण हो रही क्षमता से जूझ रहे हैं.

जिले को प्रदूषित बनाने के पीछे आपका और आपके कुछ विभागों के साहबों का बहुत बड़ा योगदान है. वैसे तो आप विश्वास नहीं कीजियेगा, चलिये हम कुछ उदाहरण के साथ आज आपको समझाते हैं.

उदाहरण नम्बर 01 :

जलाये जा रहे कूड़े से निकल रहा विषैला धुंआ

इस फोटो को देख रहे हैं साहब! ई फोटो आपके जिला मुख्यालय के रेलवे कॉलोनी स्थित केंद्रीय विद्यालय के ठीक पीछे का है. जहां हजारों की संख्या में देश के भविष्य तैयार हो रहे हैं. इसके ठीक पीछे ख़रीदाबाद मोहल्ला बसता है. जहां सैकड़ों सम्भ्रांत परिवार रहते हैं.  वैसे तो यह जमीन रेलवे की है, लेकिन इसे डंपिंग ग्राउंड बनाकर रख दिया गया है. जहां रेलवे के साथ साथ आपकी नगर पालिका का कूड़ा कचरा फेंका जा रहा है. उस कचरे का निस्तारण उसमें आग लगा कर किया जा रहा है. जिससे निकलने वाला विषैला धुंआ क्या प्रदूषण के लेबल को नहीं बढ़ा रहा है.

उदाहरण नम्बर 02 :

ओपीडी के पीछे पड़ा कचरा व गंदगी

इस तस्वीर को देखिए साहब! ई तस्वीर आपके उस सदर अस्पताल के ओपीडी की है, जिसके भरोसे पूरे जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था है. ओपीडी के पिछले गेट पर इस गंदगी के अंबार को कौन हटवाएंगे. क्या आपके स्वास्थ्य विभाग के साहब को कभी ई दिखाई नहीं देता है. यहां पर बने शौचालय के टँकी का पाइप फटा हुआ है. ओपीडी के तीन तरफ शौचालय का गंदा पानी जमा है. जिससे निकल रही दुर्गंध क्या प्रदूषण लेबल को नहीं बढ़ा रहा.

उदाहरण नम्बर 03 :

बिना ग्रीन नेट लगाये चल रहा भवन निर्माण कार्य

अब आईये इस तस्वीर को देखिए साहब! ई तस्वीर सदर अस्पताल परिसर में बन रहे सरकारी अस्पताल के  बहुमंजिला भवन की है. यहां बिना ग्रीन नेट लगाये भवन निर्माण का कार्य किया जा रहा है. जिससे गिर रहा धूलकण क्या मरीजों के स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है? क्या इससे प्रदूषण नहीं बढ़ रहा है? यहां तो काम कर रहे मजदूरों के जान से भी खिलवाड़ किया जा रहा है. इस लापरवाही पर कौन नजर रखेगा.

उदाहरण नम्बर 04 :

बालू-धूलकण से भरा मुख्य सड़क का डिवाइडर

इस तस्वीर को देखिए साहब! ई तस्वीर शहर के मुख्य सड़क को दो भागों में बांटने वाले उस डिवाइडर की है, जो डीएम कुंदन कुमार के कार्यकाल के दौरान विभिन्न पेड़पौधों से सुसज्जित रहने के कारण अपनी छटा बिखेरती थी. इसमें लगे लहलहाते पौधे पर्यावरण को कभी चार चांद लगाते थे. समुचित देखभाल नहीं होने के कारण आज यह वीरान हो गयी है. नगर परिषद के सफाईकर्मियों ने इसे सड़क के धूल मिट्टी से भर दिया है. अब इस डिवाइडर से उड़कर धूलकण राहगीरों को क्या बीमार नहीं कर रहा. इसका जिम्मेदार कौन है?



खुले में फेंका जा रहा बायोमेडिकल वेस्ट :
स्वास्थ्य विभाग ने पेपर पर बायोमेडिकल वेस्ट निस्तारण के लिए गाइड लाइन जारी कर रखा है. खुले में किसी भी सूरत में बायो मेडिकल वेस्ट को नहीं फेंकना है. निस्तारण के नियम भी तय किए गए हैं. इसके बावजूद समस्तीपुर में अधिकतर निजी अस्पताल एवं जांचघर सड़क के किनारे चोरी छुपे मेडिकल वेस्ट फेंक रहे हैं. कई स्थानों पर तो नगर पालिका के डस्टबीन बॉक्स में ही बायोमेडिकल वेस्ट फेंक दिया जाता है. अक्सर देखा जाता है कि कूड़ा उठाव में लगे नगर पालिका के सफाई कर्मियों को कूड़े के ढेरों में शामिल मेडिकल वेस्ट भी उठाना पड़ता है.

इसके अलावा कचरा बीनकर जीवन यापन करने वाले गरीब उसमें प्लास्टिक बीनने के लिए पहुंचते हैं. जिससे उन्हें हमेशा इंफेक्शन का डर बना रहता है. जानकार बताते हैं कि जिले में मात्र 172 निबंधित संस्थान ही अपना मेडिकल वेस्ट एजेंसी को देते हैं. 50 प्रतिशत से अधिक अस्पताल, अल्ट्रासाउंड सेंटर एवं जांचघरों के पास ना तो बायोमेडिकल वेस्ट प्रबंधन की व्यवस्था है और ना ही वे इसे निबंधित एजेंसी को देते हैं. ऐसे में इन जगहों का मेडिकल वेस्ट सड़क किनारे ही फेंका जाता है. जिसपर रोक लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के साहब सिर्फ चिठ्ठी ही निकालते हैं, और कुछ नहीं करते. क्या इस हालात में प्रदूषण कम होगा?

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